Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 139

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
आज भारत और भारत के बाहर भी आमदवासी समाज के अमस्तत्व के मवरुद्ध मजस तरह राजमनमतक लोग र्षड्यंत्रों और कु टनीमतयों की रचना कर रहे हैं वह मचंताजनक है । नमदयों , पहाड़ों , जंगलों , आमदवासी पड़ोस के मबना उनकी भार्षा और संस्कृ मत , और उससे मनममात होने वाली पहचान कहीं खोती जा रही है । “ आमदवामसयों की गमत में नृत्य है- वािी में गीत । जब वह चलता है तो मथरकता है और जब वह बोलता है तो गीत के स्वर फू टते हैं । वह अके ला नहीं , समूह में रहता है- समूह में सोचता है , समूह में जीता है । इतनी समृद्ध संस्कृ मत का स्वामी सभ्यता की दौड़ में एक र्षड्यंत्र और सामजश के तहत दंभी मवजेताओं के समूह द्वारा अलग-थलग कर मदया गया । मवकास के नाम पर मवस्थामपत कर जल , जंगल और जमीन तीनों से वंमचत कर उसे जंगलों से बाहर खदेड़ा जा रहा है ।” 5 आमदवासी को जंगल से बेदखल मकया जा रहा है । राजनीमतक लोग अपने स्वाथा के इन लोगों से जमीन छीन रहे हैं और वे यायावरी बंजारों-सी मजंदगी जीने को बाध्य हो रहे हैं । इनकी जरूरत थी जंगल , जल , जमीन और महाजनों-सामंतों से मुमक्त । उनके साथ अस्पृश्यता की समस्या उतनी बड़ी नहीं थीं , चू ंमक वे समाज से ही अलग-थलग रहते थे । उनका स्वामभमान ही उन्हें आबादी से दूर जंगलों में ले गया था ।
मवशेर्षत : हम कह सकते है मक आत्राम जी ‘ नवं लुगडं ’ कहानी-संग्रह में समदयों से महाजनों , जमींदारों की लूट व अंग्रेजी सरकार की जनमवरोधी नीमतयों के मखलाफ मवद्रोह करते मदखाई देते हैं । हमें उन आमदवामसयों की रक्षा के मलये , संस्कृ मत और सभ्यता की रक्षा के मलए संगमठत होकर उनके अमस्तत्व को बचाना होगा । यह आमदवासी लोग मकसी का मवरोध नहीं करते , मकसी को क्षमत नहीं पहुँचाते , कोई महंसा भी नहीं करते बमल्क प्रत्युत अपने को इतना सबल और समथा बना सकते है मक अन्य
लोग उसके अमस्तत्व के मलए कभी संकट का मवचार भी मन में नहीं ला सकें गे ।
आधार ग्रंथ- 1 ) रामराजे
आत्राम , ‘ नवं
लुगड़ ’ ( प्र . सं .
2011 ),
‘ मुक्तरंग
प्रकाशन ’,
लातूर
( महाराष्ट्र )
िंदभक ग्रंथ िूची-
1 ) रममिका गुप्ता , ‘ आमदवासी स्वर और नई शताब्दी ’( 2002 ), वािी प्रकाशन , नई मदल्ली , पृ . 08
2 ) के दार प्रसाद मीिा , ‘ आमदवासी समाज , सामहत्य और राजनीती ’( 2014 ), अनुज्ञा बुक्स , मदल्ली , पृ . 91 3 ) वही , पृ . 95 4 ) वही , पृ . 81 5 ) रममिका गुप्ता , ‘ आमदवासी स्वर और नई
शताब्दी ’, पृ . 08
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017