Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 136

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
“ निं लुगडं ’ कहानी-िंग्रह में आसदिािी ‘ पारधी िमाज ’ का सचिण ”
रामडगे गंगाधर महंदी मवभाग-
हैदराबाद मवश्वमवद्यालय , हैदराबाद Email- gangap3377 @ gmail . com
‘ आमदवासी मवमशा ’ और ‘ स्त्री मवमशा ’ है । भारत देश आज मवकास के पथ में मनरंतर आगे बढ़ रहा है । यह मवश्वास दश ाया जाता है मक आने वाले समय में भारत तीसरी महासत्ता के रूप में उभरकर आयेगा । यह देश के मलए गौरव की बात है क्योंमक मवकास से मनमित ही देश की जनता आवाम तरक्की पर पहुँचेगी ; मकन्तु संपूिा मानव जामत का एक मवभाग उन लोगों का भी है जो सभ्यता के मवकास की दौड़ में बहुत पीछे छू ट गये हैं । उन्हें आमदवासी कहा जाता है । इन आमदवामसयों का जीवन अमधकतर जंगलों में बीतता है । जंगल इनकी संस्कृ मत है और इनका धमा भी । मवमभन्न संस्कृ मतयों , सभ्यताओं तथा मवमभन्न परम्पराओं से मबलकु ल अलग आमदवासी अपनी संस्कृ मत का मवकास स्वयं करते हैं ।
दरअसल आमदवासी अपने श्रम के बल पर सदैव आत्ममनभार और स्वावलम्बी रहा है । अपने समूह और समाज से जुड़कर , प्रकृ मत का साथी बनकर जीवन जीना उसकी शैली और स्वभाव रहा है । “ आमदवासी के देवता आकाश में नहीं रहते । वे उसके घर-द्वार या जहां उसके पुरखे दफनाए जाते हैं उन ( श्मशानों ) में , ज्यादा से ज्यादा हुआ तो पेड़ों पर रहते हैं , मजनकी वह खुद रक्षा करते है । इन देवताओं से उसका संवाद सतत् जारी रहता है , चाहे जन्म हो या मरि , मववाह हो या कोई उत्सव । यानी सुख-दुःख की हर घड़ी में उसके देवता भी उसके साथ शाममल रहते हैं , संवाद करते हैं और खाते-मपते हैं ।” 1
भारत में हजारों वर्षों से शोर्षि मबना रूकावट के बेशमों की तरह चलती आ रही है । यहाँ के राजा तो बदलते रहे लेमकन समाज और लोकपरंपरा जस की तस चली आ रही है । इसका प्रत्यक्ष साक्ष्य आत्रम जी ने ‘ नवं लुगडं ’ कहानी-संग्रह में मदखाने का प्रयास मकया हैं । भारत के आमदवामसयों के सामने हमेशा से कई समस्याएँ रही हैं । जैसे महाजनी शोर्षि की समस्या , ऋि की समस्या , जमीन
घुमंतू आमदवासी समाज के जीवन पर मलखा गया ‘ नवं लुगड़ ’ रामराजे आत्राम का मराठी कहानी- संग्रह है । इसमें आत्राम जी ने पारमधयों के जीवन का यथाथा और उनकी वास्तमवकता को मदखाया है । ‘ पारधी ’ जामत एक घुमंतू समाज है जो आज यहाँ तो कल वहाँ अपने पेट की भूक को ममटाने के मलए दर- दर भटकती है । घुमंतू आमदवासी समाज के लोग मवकास की ओर अग्रसर नहीं हुए क्योंमक आमदवासी जीवन तो जल-जंगल-जमीन के संघर्षा में ही उलझा रहा । आज पुरे भारत देश में आमदवासी समाज के लोगों की जल , जंगल और जमीन की समस्या हैं । पारधी समाज में जन्म लेना मकतना महाभयानक है और उसी समाज में रहकर जीवन मबताना मकतना कमठन एवं मनदायी होता है यह ‘ नवं लुगडं ’ कहानी- संग्रह के माध्यम से रामराजे आत्राम ने मदखाने का प्रयास मकया हैं । कहानी-संग्रह में सात कहामनयाँ है ।
अमभजात्य सामहत्य के बाहर एक बहुत बड़ा समाज है जो बरसों से अपने अमधकारों से वंमचत है । मजनके पास आजीमवका का कोई साधन भी नहीं है । मजस समाज की ओर अभी तक सामहत्य की नजर भी नहीं गई लेमकन आज सामहत्य में यह स्वर मुखर हो चूका है । आज भार्षा और सामहत्य के सामने अनेक प्रकार की चुनौमतयाँ खड़ी हैं । कु छ समय पूवा दमलत , आमदवासी , स्त्री तथा अल्पसंख्यक सामहत्य हामशये पर थे परंतु आज सामहत्य में महत्वपूिा बन गया है । पररिाम स्वरूप वतामान सामहत्य में आज मजन मवमशों की मवशेर्ष चच ा हो रही है वे ‘ दमलत मवमशा ’, Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017