Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 13

Jankriti International Magazine/ जनकृसत अंतरराष्ट्रीय पसिका मक वह ग म ु श द ु ा म झ ु े ममलेगा मकसी चौराहे पर घ म ू ता हुआ , अपने पररवार के साथ दोस्तों के साथ।। नाम-ििांक पाण्डेय पता-बी-2/280 ए-4-बी लेन नं- 14 रमवन्द्रप र ु ी कालोनी, भदैनी,वारािसी(221005). मो.नं- 8090819694 ईमेल[email protected] .............................................................. श्रीमती िंध्या यादि की कसिताए अंति की हूक 1 मचमड़या चीं चीं करती ह मचमड़या ने स न ु ी है आवाज जडों को ममट्टी का साथ छोड़ने की मचमड़या परे शान है तब से अपने घोंसले के मलए उसमें हैं उसके बच्च मजनके प ख अभी मनकले नहीं ह मगरते हुए धोंसलों में भरती है मतनकों का पैबंद नहीं जानती आगे क्या होगा ? मचमड़या लगाती ह अनमगनत चक्कर वहीं आस पास बच्चे बेपरवाह जड़ों के उखड़ने की बात स माँ जल्दी लौट आती है दाना लेकर मबताती है अपना वक्त उनके साथ बच्चे ख श हैं , बहुत ख श मचमड़या देखती है बार-बार जड़ों को मचमड़या बार-बार मनहारती है बंद पलकों स आसमानी आसमान को Vol. 3 , issue 27-29, July-September 2017. ISSN: 2454-2725 शायद कोई रहता है वहाँ ? मचमड़या मचखती है बहुत खामोशी स नहीं भर सकती वो जडों में ममट्टी नहीं बना सकती वो द स ू रा नीड़ मचमड़या मौन ह मचमड़या म क नहीं । 2 मेरी छाती से आग उधार ले कर ख द ु को दहकाता है रोज स र ू ज टँग कर आसमानी आसमान म ख द ु पर मकतना इतराता है स र ू ज । 3 चोटी खींच मेरी , मसर पर मारकर चपत अक्सर कहता था वो म झ ु े "पगली" जी चाहता था कभी-कभी , म ि ु ी में भरकर कालर उसका प छ ू ँ - "क्यों कहता है रे म झ ु को पगली" नहीं प छ ा , नहीं प छ पायी , होमशयारी म झ ु े न रास आयी , पगली रहकर ही तो, मैं उसकी पस द ं बन पायी । 4 तेरी य ँ ू ही मलखी हुई कमवता का एक पीला पन्ना आज भी सँभाल रखा ह प र ु ानी डायरी में - छुपाकर सोंधी सी महक आती है ! ठीक वैसी ही जैसी आती होगी शायद तेरे बदन से । वर्ष 3, अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017