Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 127

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
महसाब से , इसका अपना उदार रवैया रहा है . यह पमत्रका अपने प्रकाशन काल के दौर में बहुत ही महत्वपूिा संपादकों से गुजरी , लेमकन इसने अपनी भार्षाई उदारता हमेशा बरकरार रखी . माधुरी का प्रवेशांक लखनऊ के ऐमतहामसक नवलमकशोर प्रेस से 30 जुलाई सन 1922 ई . में दुलारेलाल भागाव के सधे हुए सम्पादन कौशल में आता है . माधुरी का प्रकाशन शुरू होने से पहले ही नवल मकशोर प्रेस प्रकाशन जगत मवशेर्षकर उदू ा प्रकाशन जगत में अपना अमर स्थान बना चुका था . ऐसे में जब प्रेस ने माधुरी नाम से महन्दी पमत्रका का प्रकाशन शुरू मकया तो पहले अंक से ही माधुरी महन्दी की एक महत्त्वपूिा पमत्रका बन गयी . एक तरफ़ वो दौर जहां शुद्ध खड़ी बोली महन्दी के प्रचार प्रसार का था , मजसमें सैकड़ों साल पुरानी लोक-भार्षाओं पर अपेक्षाकृ त नई-नवेली महन्दी को तरजीह दी जा रही थी , वहीं माधुरी महन्दी की समथाक होते हुए भी लोक-भार्षाओं से अपना ररश्ता जोड़े हुए थी . इसकी एक वजह शायद ये थी मक माधुरी के प्रकाशन से पहले नवल मकशोर प्रेस न मसफ़ा उदू , ा अरबी , फ़ारसी और संस्कृ त बमल्क अवधी और बृज जैसी लोकभार्षाओं में मवपुल सामहत्य प्रकामशत कर चुकी थी इसमलए शुद्ध खड़ी बोली महन्दी को लेकर वो मकसी कट्टर पूवााग्रह , श्रेष्ठता बोध या राजनीमत से ग्रमसत नहीं थी . माधुरी की महन्दी ने अपने दरवाज़े लोक-भार्षाओं अथवा आम-फ़हम उदू ा के मलए बंद नहीं मकए थे . ( पीतमलया , 2000 )
तो हुकू मत के नुमाइंदे रहते हैं या नवल मकशोर के . इंनलैण्ड में प्रमसद्ध भार्षाशास्त्री एडवडा हेनरी अवध अख़बार के नुमाइंदे थे . एक महत्त्वपूिा बात ये है आरंमभक उदू ा मफक्शन का उत्कृ से नमूना रतन नाथ सरशार का फसाना-ए-आज़ाद जो आज उदू क्लामसक्स में मगना जाता है , पहली बार इसी अख़बार में धारावामहक रूप में छपा .( भागाव , 2012 ). नवल मकशोर के जीवन काल में ये अख़बार अंग्रेज़ों के प्रमत मकसी हद तक नरम मदखाई देता था . शायद इसमलए क्योंमक अंग्रेज़ों के सहयोग से ही नवल मकशोर अपनी प्रेस लखनऊ में जमा पाए थे और अंग्रेज़ों से प्रेस को छपाई का ठेका ममलता था . इसी कारि से गंगा प्रसाद वमाा का अख़बार महन्दुस्तानी और दूसरे अख़बार इसकी आलोचना करते हुए इसके अंग्रेज़ों का चापलूस तक कहते थे . मगर इसमें कोई शक नहीं मक 92 साल के अपने लंबे जीवन में इसने कई बदलाव देखे . नवल मकशोर के बाद के दौर में जब देश की राजनीमत में कांग्रेस खासकर गांधी के नेतृत्व में राष्ट्रीय आंदोलन का अहम मवकास हुआ उस वक्त ये अख़बार खुल कर कांग्रेस के समथान में खड़ा हुआ और राष्ट्रीय चेतना से ओत प्रोत सामग्री दी . ममज़ ा ग़ामलब और सर सैयद जैसी बड़ी हमस्तयां शुरू से ही अवध अख़बार के प्रशंसकों में रहीं . साथ ही इसके सम्पादकों की अपनी एक प्रमतष्ठा एक धाक रही . इसके मशहूर सम्पादकों में हादी अली अश्क , मेहदी हुसैन खां , रौनक अली अफसोस , गुलाम मोहम्मद तमपश , रतन नाथ सरशार , नौबत राय नज़र अब्दुल हलीम शरर , प्रेमचंद और शौकत थानवी शाममल रहे .( स्टाका , 2012 ). अवध अख़बार अपनी सामग्री के
नवल मकशोर प्रेस को अपने उदू ा अख़बार अवध अख़बार के मलए भी याद रखा जाएगा . ये अख़बार 26 नवंबर 1858 को शुरू हुआ . पहले ये एक साप्तामहक अख़बार था जो 1875 से एक दैमनक
मलए तो जाना गया ही अपनी भार्षा के मलए भी जाना गया . अपनी शुरुआत से ही उसने
अख़बार में बदल गया . उत्तर भारत का ये पहला
उदू ा का अख़बार होने के बावजूद उस भार्षा को तरजीह दी मजसे हम
दैमनक उदू ा अख़बार था . साथ ही ये नवल मकशोर के महन्दुस्तानी के करीब मान सकते हैं . बाद के मदनों में
लाभकारी प्रकाशनों में से एक था . एक ज़माने में तो अख़बार की भार्षा और मवकमसत होती गयी .
कहावत मशहूर थी मक महन्दुस्तान के सभी सूबों में या Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017