Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 126

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
बैलेंस दो लाख पचास हज़ार रूपए था . 1882 में यहां 1200 कमाचारी काम करते थे . सालाना डाकखचा तकरीबन पचास हज़ार रूपए का था . 1871 में कागज की खपत को पूरा करने के मलए नवल मकशोर प्रेस ने लखनऊ में अपनी मनजी पेपर ममल और लोहे का अपना कारखाना भी लगवाया . ( स्टाका , 2012 ). 1895 में नवल मकशोर की मौत के बाद प्रेस को उनके बेटे प्रागनारायऩ भागाव ने संभाला . प्रागनारायन भागाव की मौत के बाद प्रेस को उनके बेटे मबशन नारायन ने संभाला . प्रेस के सुनहरे मदनों में मगरावट तो प्रागनारायन के ज़माने में ही शुरू हो गयी थी मगर मबशन नारायन की मौत के बाद ये महान संस्थान बहुत मुमश्कलों में मघर गया . 1950 में मबशन नारायन और उनके दोनो बेटों तेज कु मार और रामकु मार के बीच बंटवारा हो गया और इस तरह ऐमतहामसक नवल मकशोर प्रेस दो अलग अलग महस्सों- तेजकु मार बुक मडपो और रामकु मार बुक मडपो में बंटकर खतम हो गई .( भागाव , 2012 )
महन्दुस्तानी सामहत्य के मवकास में नवल मकशोर प्रेस का बड़ा योगदान है . नवल मकशोर प्रेस की महत्ता को ग़ामलब ने अपने ख़तों में स्वीकार मकया है . मशहूर सामहत्यकार अमृतलाल नागर ने कहा मक जो स्थान इस्पात उद्योग में टाटा का है वही स्थान प्रकाशन व्यवसाय में नवल मकशोर का है . ( नाहीद , 2006 ). अपने 92 साल के जीवनकाल में नवल मकशोर प्रेस ने तकरीबन दस हज़ार मकताबें छापीं . इनमें मुख्य रूप
मवलास , बेताल पच्चीसी , वैमचत्र्य-मचत्रि , नूरनामा , पद्मावत , वेद-पुराि-उपमनर्षद का महन्दी-उदू ा अनुवाद , दास्ताने अमीर हमज़ा , फसाना-ए-आज़ाद , फए- अज़ायब , गामलब का दीवान , वामजद अली शाह की मस्नवी हुज्ने अख्तर , बहादुरशाह रफर का दीवान , उमराव जान अदा , गुमजश्ता लखनऊ आमद मशहूर और कालजयी कृ मतयां इसी प्रेस से छपीं . नवल मकशोर प्रेस ने ज्ञान मवज्ञान के प्रचार प्रसार के मलए लगभग 2000 मकताबें आक्सफो्डा यूमनवमसाटी को दान में दीं . महन्दी की पमत्रका माधुरी मजसके संपादकों में मु ंशी प्रेमचंद शाममल थे नवल मकशोर प्रेस से ही छपती थी .( भागाव , 2012 ).
महन्दी सामहत्य को नवल मकशोर प्रेस का एक अमूल्य योगदान इसकी सामहमत्यक पमत्रका माधुरी भी है , मजसके संपादकों में प्रेमचंद और दुलारेलाल भागाव जैसे लोग शाममल रहे . अवध की सामहमत्यक हलचल के रूप में माधुरी का मवशेर्ष योगदान रहा है . माधुरी की महंदी इसमलए भी अपना मवशेर्ष महत्व रखती है मक मजस समय महंदी की दुमनया में छायावाद की सांस्कृ मतक लहर चल रही थी और भार्षा के गठन का मशसे- संस्कृ तमनष्ठ रूप राजनीमत रूप से भी नये अथा ग्रहि कर रहा था , उस समय माधुरी अवध की अपनी अवधी भार्षा और उसकी लोक मवरासत की देशजता से परहेज करती हुई नहीं मदखाई देती है . महंदी सामहत्य की पत्रकाररता में जो बड़े पररवतान देखने में आए थे मजनमें सबसे ध्यान आकर्षाि करने का काम सरस्वती ( 1903 ) के माध्यम से पं . महावीर प्रसाद मद्ववेदी ने खड़ी बोली महंदी को गद्य और पद्य दोनों के मलए एक करने की आंदोलनधमी कमान सम्भाल रखी थी , और महंदी की मानक मदशा संस्कृ त से शब्द ग्रहि करती हुई , लोक भार्षाओंके प्रमत लापरवाह रुख अमख़्तयार मकए हुई थीं . माधुरी की छमव इन पमत्रकाओं से कु छ मभन्न थी . माधुरी की जो अपनी अलग एक नई
से महन्दी-उदू ा की मकताबें थीं . प्राचीन और समकालीन ज्ञान मवज्ञान के सारे मवर्षय इनमें समावेमशत थे . धमा , दशान , भार्षा , व्याकरि , सामहत्य , इमतहास , गमित , संगीत , मचमकत्सा आमद अनेकमवर्षयों पर उम्दा और सस्ते ग्रंथ छापे गए . इनमें कई को तो पहली बार जनता से रूबरू करवाने वाले नवल मकशोर प्रेस ही थी . तुलसीदास की रामचररत मानस , दोहावली , कु रआन का मवश्वप्रमसद्ध महन्दी तजु ामा और टीका , अवध- पहचान बनती है , उनमें से एक कारि भार्षा नीमत के Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017