Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 125

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
इल्मो अदब का एक मवशालकाय व्यमक्तत्व दुमनया से चला गया .
निल सकिोर प्रेि का अिदान
लखनऊ में मप्रंमटंग प्रेस की शुरुआत बादशाह ग़ामज़उद्दीन हैदर की शाही प्रेस या मतबा-ए-सुल्तानी से मानी जाती है .( स्टाका , 2012 ). इसके बाद हाजी हरमैन शरीफै न की मोहम्मदी प्रेस का नाम हुआ मजसमें मशहूर कामतब मु ंशी हादी अली भी काम करते थे जो बाद में नवल मकशोर प्रेस के भी मुलामज़म हुए . इसके बाद मुस्तफा खां की मुस्तफाई प्रेस वजूद में आई . मलथोग्रामफक मप्रंमटंग में लखनऊ इसी ज़माने में मशहूर होना शुरू हुआ . 1856 तक ये सभी प्रेस लखनऊ में काम करती रहीं . मुस्तफाई प्रेस की इनमें ख़ास शोहरत थी . मगर जब 1857 में लखनऊ में क्रांमत हुई तो लखनऊ का प्रकाशन थोड़े मदनों के मलए ठहर सा गया . 1858 में हालात सामान्य होने के बाद अंग्रेज़ी हुकू मत ने मप्रंमटंग प्रेस को जो सबसे पहला लाइसेंस जारी मकया वो ममला मु ंशी नवल मकशोर नाम के एक नौजवान को जो लखनऊ से मनतांत अनमभज्ञ था . मगर चू ंमक लखनऊ में अंग्रेज सरकार के दो बड़े अफसरों से उसकी जान-पहचान थी सो ये लाइसेंस उसे ममल गया . अंग्रेज़ों ने भी क्रांमत को देखते हुए मकसी स्थानीय आदमी को लाइसेंस देने के बजाय एक पररमचत और बाहर वाले को लाइसेंस जारी करना ज़्यादा सही समझा . इसके बाद 1858 में ही लखनऊ में उस नवल मकशोर प्रेस की स्थापना हुई जो आज भी महन्दुस्तान के प्रकाशन व्यवसाय का सबसे बड़ा नाम है . अब्दुल हलीम शरर ने अपनी मशहूर मकताब गुमज़श्ता लखनऊ में भी नवल मकशोर प्रेस का मज़क्र मकया है . शरर के मुतामबक अरबी फारसी की जैसी मकताबों को मजस व्यावसामयक स्तर पर छाप मदया उसे छापने के मलए महम्मत चामहए .( शरर , 1965 ). नवल मकशोर प्रेस ने उदू ा-अरबी फारसी ही नहीं बमल्क महन्दी-संस्कृ त की
मकताबें भी छापना शुरू मकया जो लखनऊ में नया चलन था . लखनऊ आने के बाद नवल मकशोर ने अपनी प्रेस सबसे पहले आगा मीर ड्योढ़ी पर लगाई . नाम हुआ- मतबा-ए-अवध अख़बार . मफर काम बढ़ने पर इसे रकाबगंज और गोलागंज में स्थानांतररत मकया . 1861 में नवल मकशोर प्रेस को पहली बार इंमडयन पीनल कोड का उदू ा तजु ामा छापने का ऑडार ममला . इसकी 30,000 प्रमतयां छपीं और इसके बाद से नवल मकशोर की गिना बड़े प्रकाशकों में होने लगी .( स्टाका , 2012 ). नवल मकशोर प्रेस को बड़ी मज़बूती कु रआन एवं दूसरे धमाग्रंथों को छापने से भी ममली . पाठ्य पुस्तकें , रमजस्टर और दूसरे कानूनी काग़ज़ात तो अंग्रेज़ों के आदेश पर वे छापते ही थे . इसके अलावा उन्होने लखनऊ में पहली बार महन्दी और संस्कृ त पुस्तकों को भी बड़े पैमाने पर छापना शुरू मकया . हालांमक उस वक्त भी लखनऊ में महन्दी और संस्कृ त की मकताबें छापने वाली ये अके ली प्रेस नहीं थी . पंमडत बृजनाथ की समर-ए-महन्द प्रेस और पंमडत मबहारीलाल की गुलज़ारे महन्द प्रेस महन्दी संस्कृ त की मकताबें छाप रहीं थीं . 1862 के आस पास जब लखनऊ में रेल लाइन और डाक सेवा शुरू हुई तो नवल मकशोर प्रेस को इससे बहुत फायदा हुआ . लखनऊ के प्रभावशाली महन्दू और मुमस्लम यहां तक मक यूरोमपयन भी इसमें काम करने लगे थे . इसकी तरक्की का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है मक 1862 में जब इसको शुरू हुए महज़ चार साल हुए थे तब ही इसमें 300 कमाचारी काम करने लगे थे . काम और काम करने वाली संख्या बढ़ने पर अंतत : 1870 में ये उस जगह पर स्थानांतररत हुई मजसकी पहचान इसके साथ जुड़ी है- हज़रतगंज . हज़रतगंज आने के बाद नवल मकशोर ने अपना बुक मडपो जहां से मकताबें बेची जातीं थीं , भी खोला . आियाजनक रूप से 1870 आते आते इस प्रेस में एक लाख बान्नबे हज़ार पेज रोज़ाना छपते थे . इस साल प्रेस का क्रे मडट
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017