Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 124

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
मकशोर का जन्म 3 जनवरी 1836 को अपनी नमनहाल मथुरा के रीढ़ा गांव में हुआ था .( स्टाका , 2012 ). उनका पररवार एक समृद्ध ज़मीनदार पररवार था . 1850 में उनकी शादी सरस्वती देवी से हो गयी . 1852 में वे पढ़ाई करने आगरा चले गए . इसके बाद वे लाहौर चले गए जहां उन्होने मु ंशी हर सुखराय जो उनके मपता के जानने वालों में से थे की कोमहनूर प्रेस में काम मकया . दो साल तक यहां काम करते हुए नवल मकशोर ने प्रेस चलाने की सारी बारीमकयों को मेहनत के साथ सीखा . कोमहनूर प्रेस के मामलक हरसुख राय इनके काम से बहुत खुश थे इसमलए इन्हे प्रेस का मैनेजर बना मदया . फौजदारी के एक मामले में जब हरसुख राय को तीन साल की सज़ा हो गई तो नवल मकशोर ने ही इनका सबसे ज़्यादा साथ देते हुए इनकी ज़मानत करवाई और प्रेस संभाला . उनकी सेवा से प्रभामवत होकर हरसुख राय ने उन्हे एक छोटा प्रेस भेंट में मदया मजसको लेकर वे लखनऊ आ गए . ( भागाव , 2012 )
अमधकाररयों से अच्छे थे इसमलए उन्हे सरकारी काम भी ममल सकता था और जनता में प्रमतष्ठा भी . 1858 में मु ंशी नवल मकशोर ने जब अपना प्रेस शुरू मकया तो सरकारी काम उन्हे जल्द ममलने लगा . इसी साल उन्होने ज्ञान मवज्ञान की पुस्तकों को छापने का अपना मशहूर काम भी शुरू मकया . साथ ही अवध अख़बार की इशाअत भी इसी साल शुरू हुई . मु ंशी नवल मकशोर ने प्रकाशन व्यवसाय के अलावा लखनऊ के सावाजमनक जीवन में भी गहरी रूमच मदखाई . वे राजनीमत में भी समक्रय रहे . नवल मकशोर जब 1858 में लखनऊ आए तो वे लखनऊ के मलए और लखनऊ उनके मलए एकदम अजनबी था . मगर बाद में वे लखनऊ से ऐसा घुल ममल गए मक आज लखनऊ उनकी कीमतागाथा का आधार है . वे आत्म-मनम ाि की ममसाल हैं . 1875 में वे लखनऊ म्यूमनमसपल कमेटी के मेम्बर चुने गए , और अगले अिारह साल तक इस पद पर बने रहे . 1881 में वे आनरेरी अमसस्टेंट कममश्नर बना मदए गए . और अगले ही साल वे ऑनरेरी ममजस्रेट बन गए .( स्टाका , 2012 ). लखनऊ में डफररन अस्पताल को उन्होने 15000 रूपए का दान मकया . जुबली हाईस्कू ल की शुरूआत की जो आज भी लखनऊ के सबसे बड़े सरकारी इंटर कालेजों में एक है . कांग्रेस की स्थापना होने के बाद वे उन लोगों में रहे जो कांग्रेस का राजनीमत के मवरोधी थे . सर सैयद अहमद खां से उनकी दोस्ती थी . वे उनके साथ यूनाइटेड इंमडयन पेमरयॉमटक एसोमसएशन में भी शाममल रहे जो मक कांग्रेस की मुखालफत के मलए बना था . बाद में साम्प्रदामयकता के मुद्दे पर सर सैयद से उनका मतभेद हुआ और दोनो के रास्ते अलग हो गए . मगर ये बात सही है मक सर सैयद कभी नवल मकशोर के ममत्रों और प्रशंसकों में हुआ करते थे . 1895 में मदल का दौरा पड़ जाने की वजह से नवल मकशोर की मौत हो गयी . इसके साथ ही भारतीय
1858 में नवल मकशोर ने लखनऊ में अपना खुद का छापाखाना शुरू मकया . लाहौर से नवल मकशोर के लखनऊ आकर छापाखाना खोलने के कई कारन थे . सबसे पहला तो ये मक लाहौर में रहते हुए नवल मकशोर की दोस्ती दो प्रभावशाली अंग्रेज़ अफसरों से हो गयी थी . वे दोनो प्रमतमसेत पद पर लखनऊ स्थानांतररत हो गए थे . ये थे सर राबटा मांटगुमरी और कनाल सांडसा .( भागाव , 2012 ). इसके अलावा लखनऊ अवध की राजधानी था और इल्मो-अदब के मका ज़ के तौर पर पूरी दुमनया में मशहूर था . मदल्ली से बहुत पहले से सामहबे फन लखनऊ आने लगे थे . अत : प्रेस की मुलाज़मत चाहने वाले लोगों की यहां कोई कमी नहीं थी . तीसरा ये मक 1857 की क्रांमत के बाद लखनऊ में कोई भी बड़ी प्रेस नहीं बची थी साथ ही अंग्रेज़ों का दमन इतना बढ़ चुका था मक अंग्रेज़ों से मकसी की मामूली दोस्ती भी उसे बहुत रूतबा मदला देती थी . नवल मकशोर के सम्बन्ध अंग्रेज़ Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017