Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 123

सहन्द्दुस्तानी अदब के प्रचार-प्रिार में निल सकिोर प्रेि का योगदान
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725

सहन्द्दुस्तानी अदब के प्रचार-प्रिार में निल सकिोर प्रेि का योगदान

सहमांिु बाजपेयी शोधाथी- जनसंचार मवभाग , म . गां . अं . महं . मव . मव .
वध ा , महाराष्ट्र
िोध िारांि-
प्रस्तुत शोधपत्र का उद्देश्य महन्दुस्तानी अदब यानी महन्दी-उदू ा सामहत्य के प्रचार प्रसार में मु ंशी नवल मकशोर प्रेस की भूममका को तलाशता है . नवल मकशोर प्रेस उन्नीसवीं और बीसवीं सदीं में भारत ही नहीं बमल्क दुमनया के सबसे बड़े प्रकाशन संस्थानों में से एक थी . 1858 में शुरू होकर ये प्रेस 1950 तक लगातार काम करती रही . यू ं तो इसने प्रकाशन सम्बन्धी मवमवध कामों को अंजाम मदया . मिमटश शासन काल में स्टेशनरी और स्कू लबुक की छपाई के ठेके भी इसको ममले . प्रेस ने दुमनया की अनेक भार्षाओं में प्रकाशन मकया . मगर महन्दी-उदू ा यानी महन्दुस्तानी अदब के मलए ये प्रेस ख़ास तौर पर सममपात थी . महन्दी-उदू ा सम्बन्धी अपने योगदान के मलए नवल मकशोर प्रेस को कालजयी ख्यामत ममली . प्रस्तुत शोधपत्र इसी योगदान की पड़ताल करता है .
की-िडडकि- नवल मकशोर प्रेस , महन्दुस्तानी , महन्दी- उदू , ा सामहत्य , पत्रकाररता प्रस्तािना-
महन्दुस्तानी अदब की दुमनया में मु ंशी नवल मकशोर और उनके प्रेस का नाम कभी भुलाया नहीं जा सकता . उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में मु ंशी नवल मकशोर प्रेस ने भारतीय सामहत्य के क्षेत्र में अनुपम योगदान मदया है . महन्दी और उदू ा सामहत्य के इमतहास में रूमच रखने वाले जानते हैं मक मु ंशी नवल मकशोर प्रेस ने अपने प्रकाशन व्यवसाय के ज़ररए महन्दुस्तानी अदब को जो समृमद्ध दी है वो आियाजनक है . इसीमलए सामहत्य
जगत के बड़े बड़े पुरोधाओं से लेकर आज के छोटे छोटे शोधाथी तक सब इस प्रेस को बहुत ऊं चे दजे पर रखते हैं . उदू ा के बड़े शाइरों का दीवान छापना हो या संस्कृ त के प्राचीन ग्रंथों का उदू ा और अरबी फारसी में अनुवाद छापना हो , या उदू ा अरबी फारसी ग्रंथों को महन्दी और संस्कृ त में छापना हो या कु रआन शरीफ के अलग अलग भार्षाओं में सस्ते संस्करि छाप कर इसे आम मुसलमान के मलए सुलभ बनाना हो अथवा अपने अख़बारों के ज़ररए सामामजक एवं राष्ट्रीय चेतना फै लाना हो .. नवल मकशोर प्रेस ने ये काम कु छ इस तरह से अंजाम मदए हैं मक ये अपनी ममसाल खुद हैं . महन्दुस्तानी सामहत्य में इसी महान योगदान के मलए इमतहासकार महमूद फारूकी ने उन्हे अद्भुत व्यमक्तत्व बताया है .( फारूकी , 2010 )
िोध-उद्देश्य-
महन्दी-उदू ा सामहत्य के प्रचार प्रसार में नवल मकशोर प्रेस के योगदान की पड़ताल करना
िोध-प्रसिसध-
प्रस्तुत शोध-पत्र के लेखन में गुिात्मक अन्तवास्तु मवश्लेर्षि शोध प्रमवमध का इस्तेमाल मकया गया है .
मुंिी निल सकिोर : एक पररचय
मु ंशी नवल मकशोर भारतीय सामहत्य जगत के अमर पुरूर्ष हैं . उन्होने 22 साल की अल्पायु में लखनऊ में जो प्रेस शुरू मकया उसने अगले 92 साल तक ऐसी ऐसी चीज़ें छापीं मक पूरी दुमनया आज इसका लोहा मानती है . ग़ामलब ने अपने एक पत्र में मलखा है मक मु ंशी नवल मकशोर के छापेखाने का क्या कहना मजसका दीवान छापते हैं , आसमान पर पहुंच जाता है .( ग़ामलब , 2010 )
अपने छापेखाने के साथ साथ अपने सामामजक राजनैमतक सरोकारों के मलए भी मवख्यात मु ंशी नवल
Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017