Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 112

1 ) भारत का प्राचीन नाटक , हेनरी डब्लू वेल्थ , मोतीलाल बनारसीदास , नई मदल्ली 1977 , पृष्ठ 196
2 ) महंदी सामहत्य और संवेदना का मवकास ; रामस्वरूप चतुवेदी , लोकभारती प्रकाशन , इलाहाबाद संस्करि 1986 पृसे 147
3 ) नाट्यशास्त्र का इमतहास ; डॉ पारसनाथ मद्रवेदी , चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन , वारािसी , संस्करि -2012 पृष्ठ 99
4 ) डॉ लक्ष्मी नारायि का नाट्य सामहत्य ; सामामजक ्टमसे , डॉ करुिा शम ा , वािी प्रकाशन , नयी मदल्ली ; संस्करि 2002 पृष्ठ 34
5 ) संस्कृ त के प्रमुख नाटककार तथा उनकी कृ मतयाँ , डॉ गंगासागर राय , चौखम्बा संस्कृ त भवन , वारािसी , संस्करि-2001 पृष्ठ 420
6 ) महंदी सामहत्य और संवेदना का मवकास ; रामस्वरूप चतुवेदी लोकभारती प्रकाशन , इलाहाबाद संस्करि 1986 पृष्ठ 151 7 ) समकालीन महंदी नाटक की संघर्षा चेतना ; डॉ मगरीश रस्तोगी , हररयािा सामहत्य अकादमी चंडीगढ़ संस्करि 1990 पृष्ठ 5
Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
नहीं मदया गया । नाटक तब तथाकमथत माना जाता जब वह मंच पर प्रस्तुत नहीं हो जाता । नाटक तब तथाकमथत मना जाता जब वह मंच पर प्रस्तुत नहीं हो जाता और इस अवमध की अमधकांश नाट्य कृ मतयों की सफलता मसद्ध होने का साधन ही नहीं रह गया ।
5 ) िािोत्री सहंदी नािकों का स्िरुप-
साठोत्तरी महंदी नाटकों में लक्ष्मीनारायि ममश्र , हररकृ ष्ट्ि प्रेमी , उदयशंकर भट्ट , गोमवन्द वल्लभ पन्त , भगवती चरि वमाा , अमृतलाल नागर आमद उल्लेखनीय है । तो दूसरी पीढ़ी में मवष्ट्िुप्रभाकर , भीष्ट्म साहनी , जगदीश चन्द्र माथुर , लक्ष्मी कान्त वमाा , शम्भुनाथ मसंह , मवनोद रस्तोगी , मोहन राके श , सवेश्वर दयाल सक्सेना , आमद है ।
आज का स्वर रंगमंच की ्टमसे से आशावादी बन गया है मानव मूल्यों के प्रमत अगाध मनष्ठाके कारि आप आज की कु हासा में मकरि देख रहे है । इस बात पर डॉ मगरीश रस्तोगी कहते है मक “ समकालीन नाटक और रंगमंच की ्टमसे से भी भारतेंदु की प्रासंमगकता इसमलए बढ़ जाती है क्यू ंमक उन्होंने नाटक के ्टसेव्य को अपनी कल्पना , पररकल्पना , रचना , पुनराचना के स्तर पर अनुभव मकया था ”
इसी तरह से यमद हम सामहत्य और रंगमंच के इस मूलभूत अंतर को समझ ले तो उनकी समीक्षा और आलोचना के प्रमतमानों पर खुलकर बातचीत की जा सकती है इसमलए आधुमनक महंदी रंगमंच आज समाज को एक नई मदशा देने का काम कर रहा है । नाटक यह ्टश्य श्रव्य माध्यम होने के कारि इसका प्रभाव ज्यादा बढ़ गया हैं जामहर है मक रंगमंच के सौन्दया शास्त्र पर गहराई से मवचार करने में असंख्य और प्रस्तुमत , मसद्धांत , और व्यवहार परंपरा और शास्त्र इन सभी चीजों पर ध्यान देना आवश्यक है ।
िन्द्दभक ग्रन्द्थ िूची-

1 ) भारत का प्राचीन नाटक , हेनरी डब्लू वेल्थ , मोतीलाल बनारसीदास , नई मदल्ली 1977 , पृष्ठ 196

2 ) महंदी सामहत्य और संवेदना का मवकास ; रामस्वरूप चतुवेदी , लोकभारती प्रकाशन , इलाहाबाद संस्करि 1986 पृसे 147

3 ) नाट्यशास्त्र का इमतहास ; डॉ पारसनाथ मद्रवेदी , चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन , वारािसी , संस्करि -2012 पृष्ठ 99

4 ) डॉ लक्ष्मी नारायि का नाट्य सामहत्य ; सामामजक ्टमसे , डॉ करुिा शम ा , वािी प्रकाशन , नयी मदल्ली ; संस्करि 2002 पृष्ठ 34

5 ) संस्कृ त के प्रमुख नाटककार तथा उनकी कृ मतयाँ , डॉ गंगासागर राय , चौखम्बा संस्कृ त भवन , वारािसी , संस्करि-2001 पृष्ठ 420

6 ) महंदी सामहत्य और संवेदना का मवकास ; रामस्वरूप चतुवेदी लोकभारती प्रकाशन , इलाहाबाद संस्करि 1986 पृष्ठ 151 7 ) समकालीन महंदी नाटक की संघर्षा चेतना ; डॉ मगरीश रस्तोगी , हररयािा सामहत्य अकादमी चंडीगढ़ संस्करि 1990 पृष्ठ 5

Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017