Jankriti International Magazine Jankriti Issue 27-29, july-spetember 2017 | Page 106

Jankriti International Magazine / जनकृ सत अंतरराष्ट्रीय पसिका ISSN : 2454-2725
दुकानदार से मोल भाव कर हाममद वह मचमटा तीन पैसे का ले लेता है और मचमटे को शान से कं धे पर रख कर बाकी सामथयों के पास जाता है ।
सूत्रधार – मचमटे ने सभी को मोमहत कर मलया ; लेमकन अब पैसे मकसके पास धरे हैं । मफर मेले से भी तो दूर मनकल आये हैं , नौ कब के बज गए , धुप तेज हो रही है । घर पहुँचने की जल्दी भी तो है ।
अब बालकों के दो दल बन गये है । एक ओर हाममद अके ला तो दूसरी और बाकी सब । शास्त्राथा हो रहा है । सम्मी तो मवधमी हो गया है । दूसरे पक्ष से जा ममला है । हाममद के पास न्याय का बल है । और नीमत की शमक्त । एक और ममट्टी है । तो दूसरी और लोहा ।
( हाममद की तका शमक्त के सामने सभी बच्चे मनरुत्तर हैं ।)
मवजेता को हारने वालों से जो सत्कार ममलना स्वभामवक है , वह हाममद को भी ममला । ओरों ने तीन- तीन , चार-चार आने पैसे खचा मकए । पर कोई काम की चीज न ले सके ।
हाममद ने तीन पैसों में ही रंग जमा मलया है , मखलौनों का क्या भरोसा ? हाममद का मचमटा बरसों बना रहेगा ।
( बच्चों में भी संमध की शतें तय होने लगी ।)
मोहमसन – लेमकन कोई हमे दुआ तो नहीं देगा । महमूद – दुआ को मलए मफरते हो उलटे मार ना पड़े ।
हाममद स्वीकारता है । मक मखलौने को देखकर मकसी की मां इतना खुश नही होंगी , मजतना उसकी दादी मचमटे को देख होगी । तीन पैसों में ही तो उसे सबकु छ करना था । मफर अब तो मचमटा रुस्तमे-महन्द है ।
रास्ते में वामपस लौटते हुए । महमूद को भूख लगी । उसके बाप ने के ले खाने को मदये । महमूद ने के वल हाममद को साझी बनाया । यह उसके उस मचमटे का प्रसाद था ।
( पुन : गाँव का ्टश्य )
नयारह बजे सारे गाँव में हलचल हो गई । मेले वाले आ गये । मोहमसन की बहन ने दौड़ कर मभश्ती उसके हाथ से छीन मलया । और सारी ख़ुशी के मारे तो ममयां मभश्ती तो नीचे आ रहे । इसी तरह नुरे के वकील का अंत उसके प्रमतष्ठा के अनुरूप हुआ । उनकी अम्मां ने शोर सुन तो मबगड़ी और दो-दो चांटे भी लगाए ।
रहा महमूद का मसपाही । उसे चटपट गाँव का पहरा देने बैठा मदया । पालकी सजाई गई । और बच्चों का शोर पीछे-पीछे " छोनेवाले , जागते लहो " इसी बीच
मसपाही की एक टांग टूट जाती है । गुलर के दुध से जोड़ने का प्रयत्न मकया जाता है ।
मोहमसन – जऱा अपना मचमटा दो । हम भी देखें । इधर हाममद की आवाज सुनते ही उसकी दादी दौड़ी । और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगी । सहसा
( सभी अपने मखलौने हाममद के सामने पेश करते हैं ।) उसके हाथ में मचमटा देख चौंक पड़ती है । और पूछती
है ।
हाममद ( बाकी बच्चों के आंसू पोंछते हुए ।) – मैं तुम्हे मचढा रहा था , सच । कहाँ ? यह लोहे का मचमटा और ' यह मचमटा कहाँ था ?' कहाँ ? ये मखलौने । मानो अभी बोल उठें ।
हाममद – मैंने मोल मलया है । Vol . 3 , issue 27-29 , July-September 2017 . वर्ष 3 , अंक 27-29 जुलाई-सितंबर 2017